
जन्म लिया कोख से,
एक आदमी,
हाँ ,एक जनाब पैदा हुआ၊
पहली सास में,
रोते रोते वे,
पहली और आख़िरी बार
अपने माँ को खुश कर दिया၊၊
अटकी हुई रुआंसी को,
गले में दबोचकर,
माँ ने अपने लडके को चमकीली आँखों से देखा၊၊
टटोलकर प्यार से,
अपना बनाया,
बेटा पुकारा ॥
भाषा,संस्कृति,प्यार,सभ्यता,एहसास,
माँ ने पुरुष को तक़रीबन देने की कोशिश की ॥
आँचल पकड़ वह पैदल चलना सीखा,
पाँव पर ताकत समझे दौड़ना शुरू कर दिया
पहले से ही वह बच्चा था, अब भी बच्चा है၊၊
शायद ईश्वर अपना रूप धरती पर
धारण किया गया हो !
नहीं धारण किया है၊၊
वक्त बदलने लगे, ऋतुओं का संगीत,
दिन बीतने लगा၊၊
जनाब बड़ा हो गया, मज़बूत कन्धों में।
अब वो ईश्वर नहीं,
जो भी माँ कहे एतराज़ ही एतराज़၊
एक दिन माँ बाज़ार जाने को कहा,
कल ही करें- बताया।
पढ़ने को कहा,
कल ही करें၊
समझ -बूझकर जीने को कहा,
बहुत वक्त है ना कल ही करें၊
नौकरी को तलाश-ना
कल ही करें।
अरे शादी करोना,
कल ही करे၊
कल-कल करते कहते
आदमी आज को भूल बैठे၊
माँ के कहने को न माना देख –
कबीर की वाणी वहाँ सिसक रही
काल्ही करे सो,,,,अब.,,,,၊၊
अंत में,
काले रंग के टुकड़े के नीचे से,
किसी ने बताया,
जाके दफ देना
जनाब का मुर्दा सड जायेगा
हाँ जी अब करें၊၊