
वो आंधी शहर में जो कल चल रही थी,
नहा कर के खूं में अज़ल चल रही थी।।
जहां पर कीसी को भी सख ना हूआ था,
उसी कमरे में तो नक़ल चल रही थी।।
जो देखा कीसी ने सुखंनबर के घर में,
सो महफ़िल में उसकी ग़ज़ल चल रही थी।।
हूऐ से बफ़ा उसी वक्त मैकश ,
मेरे उन्स की जब अजल चल रही थी।।
दिल की हर आस के शीशा बिखर गया,
शहरा में चलिए बस्ती से दिल भर गया।।
पहुंचा बुलन्दीयौं पे मुकद्दर का सितारा,
उनका लहू जो मेरी रगौं में उतर गया,
धर्मों हया का सूरज अभी बरकरार है।
मत मारो इसे ये तो शर्म से ही मर गया।।
मैकश बताओ प्यार जिसे रोशनी से था।
आखिर वो शख्स कैसे उजाले से डर गया।।