रानी कुमारी – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

नारी ही प्रेम, वात्सल्य, स्नेह, समर्पण,
है सृष्टि ,सृजन,मोह, माया और मुक्ति,
नारी से ही अस्तित्व तेरा और मेरा,
नारी ही भक्ति, नारी ही शक्ति।

माँ ,बेटी, पत्नी और बहन,
हर रूप में संवारती जीवन,
चुपके से सब कष्ट सह जाती है,
करती है बस प्रेम-स्नेह ही अर्पण।

यूं तो वह सहनशक्ति की मूर्ति है,
पर जब-जब होता है अत्याचार,
कराल कालिका बन वह,
दुष्टों का भी करती संहार।

चाह नहीं नारी की
कि वह पूजी जाये।
या सजावट की वस्तु समझ,
घर में सजायी जाये।

उसे समझो, उसे सराहो,
हक दो, जिसकी वह हकदार,
दो मान सम्मान और,
उसके हिस्से का प्यार।

इच्छाओं, तमन्नाओं और साहस
से भरी दृढनिश्चयी नारी है,
कमजोर समझने की भूल न करना,
अकेले सौ-सौ पर वह भारी है।