
ईश्वर की अनुपम सृष्टि है औरत
हर रूप में रोशन, हर रूप में
उज्जवल
रब का दूजा रूप है औरत।
कई किरदार वो एकसाथ निभाये
कभी माँ, बहन तो कभी पत्नी
बन जाये।
औरत का हर रूप अनुपम
कोई भी रूप किसी रूप से ना
कम।
माँ का रूप तो ममता लुटाए
शिशु को अपनी वक्ष से लगाकर
दुनिया की आंधी से बचाये।
पुरुष की रचना औरत ने ही की
उसके कोख ने ही तो उसे(पुरुष )
संसार की सुंदर छवि दिखी।
पत्नी बनकर घर को संवारे
परिवार की डोर को थामे
उसके बिना घर,घर नहीं लगता
गृहलक्ष्मी वो, वो ही घर की
विधाता।
बहन का रूप स्नेह का प्रतीक है
माँ के बाद तो बहन ही होती है।
औरत का हर रूप है
रब का प्रतिबिंब।
सदा करो उसका सम्मान
उसकी हर इच्छा का रखो ध्यान।।