शालिनी मिश्रा तिवारी – पति-पत्नी – साप्ताहिक प्रतियोगिता

समय चक्र के धुरे जैसे अनिष्पन्न एक दूजे के बिना। हैं पूरक सुखद स्मृतियों के हर लेते हर दुख आपस में नए सृष्टि के रचयिता नव युग कारक पति-पत्नि। जीवन के अनजान पथ को निर्बाध पूर्ण करते। पत्नि का श्रृंगार है पति जैसे किंजलकिनी पुष्प। स्वर्णिम आभा सी मुस्कान एक दूजे के मुख पर एक विश्वास एक दूजे के साथ पर। बंध जाते सात फेरों से हो जाते दो तन मन एक पति-पत्नि। साक्षी हैं प्रेम के उन क्षणों के के जब कोई साथ नही होता तब अवलम्ब होते हैं एक दूजे के पति-पत्नि एक शब्द नहीं भाव जो खुद में कई अर्थों को समेटे है अंतर में।।