सावन की सोमवारी का बहुत महत्व होता है
बोलते बम
कटते जाते तम
आस में हम
भाभी की माँ का 34 – 35 साल पहले का बताया किस्सा है ….. वे बोलती थी सच्ची बात है
एक उनकी परिचित थी या रिश्तेदार थी …. जो हर साल कांवर ले कर सावन में बाबाधाम जाती थी …. एक साल वो गर्भवती थी और लगभग समय पूरा हो गया था , तभी सावन शुरू हुआ …. वो तैयार हुई उसे कांवर लेकर बाबाधाम जाना है ….. घर के सभी लोग विरोध किये कि ऐसे हालत में कैसे जाओगी …..
( तब तो बहुत कठिन रास्ता रहा होगा ….. जंगल झाड़ी .. सड़क नहीं …. बरसात में तो यूँ ही सांप बिच्छू का डर …. जंगली जानवरों का आतंक ….. डॉ बैद्य का कोई सुविधा नहीं
अब तो प्रशासन और जनता हर तरह का ख्याल रखती है )
लेकिन वो जिद पर अड़ सफर शुरू की कि बाबा भोलेनाथ की यही मर्जी है तो यही सही ….. जहाँ जो होगा देखा जाएगा और सहा जाएगा
बाबाभोले तो ठहरे भोले उनकी मर्जी उस स्त्री को बच्चा आधे सफर में ही हो गया ……. बच्चे होने की ख़ुशी उसे अधूरी लगने लगी …. उसे जल नहीं चढ़ाने का अफसोस होने लगा …. वो दुखी मन से व्याकुल थी लेकिन उसे झपकी आ गई …… उसे आभास हुआ कि कोई कह रहा है कि दुखी मत हो तुम्हारा जल शिव जी पर चढ़ गया है ….. वो बोली ऐसा कैसे हो सकता हैं जब मैं मंदिर पहुंची ही नहीं …… अरे बहस करने से अच्छा है तुम जल पात्र को देखो ….. झट से उस स्त्री की आँख खुल गई ….. वो जलपात्र को देखी तो जलपात्र खाली था ……. वो चिल्ला पड़ी …… बोल बम
मानो तो देव ना तो पत्थर
ॐ है सहारा
दौड़ लगाते
काँवरियों का मेला
गेंदा का आंधी