
प्रथम स्फुरण हुआ धरा पर
नवजीवन की आशा में ।
सभ्यता के प्रांगण में
मंगल कारी प्रत्याशा में।।
सकल चराचर व्योम धरा सब
सीख रहे थे प्रस्फुटन को ।
तब प्रथम मानव जन्म हुआ
सभ्यता के संवर्धन को ।।
तब से अब इस पुण्य धरा पर
नित नूतन “सृजन” सजाया है ।
हिन्द राष्ट्र की निज भाषा में
राष्ट्र गौरव गाया है ।।
प्रज्ञा संबल राष्ट्र प्रेम की
अमर अलख निशानी है ।
शोर्य,पराक्रम,ज्ञान,ध्यान से
सोई मानवता जगानी है ।।
जन्म – मृत्यु बूंद तप्त तवे – सा
निज कर्मों की माया है ।
लख चौरासी देह धरकर यह
मानव जीवन पाया है ।।
जीवन मिला सौभाग्य उदित
निज राष्ट्र मान बढ़ाना है ।
राष्ट्र हित बलिवेदी पर
निज प्राण सुमन चढ़ाना है।।
सर्वाधिकार सुरक्षित , मौलिक रचना