चुनावी समर – डॉ अमरचंद वर्मा

*बातें*
           चुनावी समर
हर दिन होती है झूठों की झूठे वायदे की बातें,
चुनावी समर में मरने वालों की नहीं होती बातें।
पुल टूटे चाहे इंजन टूटे राजनीतिक होती बातें,
मरने वाले मर गये अब तो चुनाव समर की बातें।
घड़ियाली आसूंओ की धारा में रोने की होती बातें,
गंदी राजनीति में मानवता की कहाँ पर होती बातें।
बढ़ चढ़ कर गरीब की गरीबी हटाने की होती बातें,
चुनावी दंगल में शराबियों की होती रहती अच्छी रातैं।
जातिवाद होता हावी तीर तीखे चला कर फेंकते बातें,
मतदाता को दिखाते हवामहल वादों की ही करते बातें।
हवा हवाई फेंक बातों में विकास झुमलों की होती है बातें,
सतह के धरातल पर महंगाई से जेब काटने की होती बातें।
पूंजीवाद सीना तानकर उड़ान भरने को देता उडन खटौले,
नर की बाछें खिल जाती दौलत को माईबाप बना करते बातें।
लोकतंत्र का होता नित दिन चीर हरण कौन करे इसकी बातें,
राजनीति में अभद्र भाषा की भरमार नैतिकता की कहाँ बातें ।।
अंकुश सत्ता पर रखा करो नहीं तो ये बन जाती है तानाशाही बातेंबातें,
वोट जनता सोच समझ कर दिया करो राज में हों जनशाही बातें ।।
*डॉ अमरचंद वर्मा ,गढ़भोपजी खंडेला, सीकर राजस्थान*