भूकंप – आचार्य डॉ पी सी कौंडल

कविता शीर्षक:  भूकंप
भूकंप आम नहीं कभी कभार
अा जाया करते हैं।
लेकिन जब भी आते हैं भूकंप
तो कहर ढा जाया करते हैं।।
रोक लो वक़्त रहते इन भूकंपों को
अगर रोक सकते हो।
अन्यथा वे इस धरती का नामों निशान मिटा जाया करते हैं।।
हम ही जिम्मेदार हैं भूकंप के
आने के लिए।
क्यों कि करते जा रहे  हैं
छेड़छाड़ हम इस धरती मां के साथ और बिगाड़ते जा रहे हैं
प्रकृति के संतुलन को।।
यह सब होते देख क्या धरती कांपेगी नहीं?
झटके मारेगी नहीं भूकंप के नाम से
हमारी नियति को भांप कर?
भूकंप एक झटके में ही कर सकता है काम तमाम और ये धरती फट कर ले सकती है हम सबको अपने आगोश में।
क्या हम ही विवश नहीं कर रहे
भूकंप को कहर ढाने के लिए।
अपने आप को तो दोष देते नहीं हम
दोष देते हैं दुनियां के रचैता प्रभु को कि हे प्रभु। क्यों किया ये सब सर्वनाश।
जिस मातृ भूमि पर हम जन्मे,पले, बढ़े और जवान हुए
क्या उस के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं है?
हमारा भी दायित्व है अपनी धरती मां को खूशी और खुशहाली प्रदान करने का।
अगर मां खुश होगी तो कभी भी भूकंप के आने का अंदेशा नहीं रह जाएगा।।
आचार्य डॉ पी सी कौंडल, गांव डडोह डाकघर ढाबन, तहसील बल्ह, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश