मुस्कराहट ये जिंदगी का सफ़र – प्रा.गायकवाड विलास

*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय: मुस्कराहट*
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**ये जिंदगी का सफ़र*
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   (छंदमुक्त काव्य रचना)
मुस्कराकर जियो जिंदगी तुम हरपल यहां पर,
मुसीबतें नहीं है इस दुनियां में कहां पर?
पेड़,पौधे,जानवर हो या इन्सान सभी,
कोई नहीं है इस जहां में उसी मुसीबतों से दूर।
कभी खुशी कभी ग़म उसी का नाम जीवन है,
कभी पतझड़ तो कभी बहार यही जीवन का सार है।
भूलकर गमों को जो हंसते हैं जीवन में सदा के लिए,
उन्हीं के लिए जीवन में बनती राहें भी आसान है।
हरपल डुबकर गमों में हल मिलता नहीं जीवन में,
मुस्कुराने से आसान हो जाती है सभी मुश्किलें राहों पर।
जब हंसती है जिंदगी तो बढ़ जाता है हौसला मन का,
इसीलिए हंसते-हंसते ही बढ़ना है हमें मंजिल की ओर।
रात और दिन की तरह होती है ये जिंदगी भी,
कभी सुखों की छांव तो कभी यहां गमों की तपती धूप है।
इसीलिए छोड़कर हरपल सूखों की वो तम्मनाएं,
दुखों को भी हमें यहां सहते सहते जिंदगी को भी हंसाना है।
जहां होते है खिलते हुए फूल चमन में कई,
वहीं पर तितलियां और भंवरों का आना-जाना है।
ऐसे ही खिलते चमन की तरह है ये जिंदगी भी,
जहां चेहरे पे मुस्कराहट है,उसी आंगन में सुखों की बहार है।
क्या है यहां पर मेरा और तुम्हारा इस संसार में?
ये चलती सांसें भी अपनी उधार में मिली अमानत है।
खाली हाथ आए है हम खाली हाथ जायेंगे एक दिन,
फिर क्युं हम यहां अपनी मुस्कराहट भी गंवा देते है।
सीने में दबाकर ग़म आसान नहीं होती ये जिंदगी हमारी,
मुस्कुराने से कुछ तो सुकून मिलता है जीवन में।
इसीलिए गमों पर भी मुस्कुराते रहो हरपल यहां,
गमों के बिना कहां है यहां पर सदा के लिए खुशियों भरा जहां।
मुस्कराकर जियो जिंदगी तुम हरपल यहां पर,
आंधियां तुफानों से भरा है ये जिंदगी का सफ़र।
पेड़,पौधे,जानवर हो या इन्सान सभी,
 कोई भी नहीं है इस जहां में उसी मुसीबतों से दूर।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
      महाराष्ट्र