लालच – गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद

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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्य साप्ताहिक प्रतियोगिता
                     (हमारी वाणी)
विषय- लालच
विधा- गीत
शीर्षक – करें नहीं ऐसे लालच हम
करें नहीं ऐसे लालच हम, जीवन बर्बाद हो जाये।
रह जाये जग में अकेले,रिश्तें अपनों से टूट जाये।।
करें नहीं ऐसे लालच हम ।।
लालच बुरी बला है,जिसमें ईमान बचता नहीं है।
लालच में इंसान सच में, इंसान रहता नहीं है।।
आकर इसकी गिरफ्त में, शैतान हम नहीं हो जाये।
रह जाये जग में अकेले, रिश्तें अपनों से टूट जाये।।
करें नहीं ऐसे लालच हम।।
लालची इंसान में कभी, होती नहीं है दया और शर्म।
होता नहीं वह वफादार,होता नहीं  उसका कोई धर्म।।
रहे लालच से हम तो दूर, नरक जीवन नहीं हो जाये।
रह जाये जग में अकेले, रिश्तें अपनों से टूट जाये।।
करें नहीं ऐसे लालच हम।।
बनो देशभक्त भारत के, लालच में दुश्मन नहीं इसके।
तुम्हारी हस्ती है इससे, तुम पर बहुत अहसान है इसके।।
महका हुआ चमन अपना, खिजा नहीं कल हो जाये।
कहलाये नहीं देश के गद्दार, बेवतन नहीं हम हो जाये।।
करें नहीं ऐसे लालच हम।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)