नई दिल्ली: रानी मुखर्जी ने चार साल बाद बड़े परदे पर दस्तक दी है. रानी मुखर्जी को आखिरी बार 2014 में ‘मर्दानी’ में एक दबंग पुलिस अफसर के किरदार में देखा गया था, जिसे खूब पसंद भी किया गया. फिल्म पूरी तरह से महिला पुलिस अफसर के संघर्ष की कहानी थी. अब रानी मुखर्जी ‘हिचकी’ के साथ भी संजीदा विषय लेकर आई हैं, और इस बार भी केंद्र में एक संघर्षरत महिला है, जिसे अपने शरीर की एक कमी से तो जूझना ही है, साथ ही इस कमी की वजह से समाज की ज्यादतियों को भी सहना है. रानी ने दिखा दिया है कि एक प्रेडिक्टेबल सब्जेक्ट के बावजूद वे कैरेक्टर में जान डालने की कूव्वत रखती हैं. रानी मुखर्जी की एक्टिंग दिल को छू लेती है.
‘हिचकी’ की कहानी टॉरेट सिंड्रोम की शिकार टीचर नैना माथुर की है, जो इस बीमारी की वजह से सही से बोल नहीं पाती है और अजीब आवाज (हिचकी) निकालती है. परफेक्शन में यकीन करने वाले इस समाज में नैना के लिए कोई जगह नहीं है, उसे अपने लिए जगह बनाने के लिए संघर्ष करना है. लोगों को लगता है कि नैना की यह दिक्कत अध्यापन की राह का रोड़ा बनेगी लेकिन नैना हार नहीं मानती और लंबे संघर्ष के बाद उसे एक स्कूल में नौकरी मिलती है. लेकिन यहां भी चुनौतियां कम नहीं होती. नैना को आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की क्लास को पढ़ाना होता है, और ये बच्चे कोई ऐसे वैसे नहीं हैं. बस, फिर यहीं से शुरू होता है, एक नया संघर्ष. एक अलग ढंग की टीचर जो छात्रों को पढ़ाने के लिए रिश्वत देने से भी नहीं चूकती. रानी मुखर्जी और उनके स्टूडेंट्स भरपूर मजा दिलाते हैं. लेकिन कहानी में सबकुछ बहुत ही स्वाभाविक है. कहीं-कहीं बहुत ज्यादा नाटकीयता की स्थिति बन जाती है.