आज तक बहूत सारे महिमा-मंडित आलेख कविता पढ़ चुकी हूँ …. खुद एक बहुत ही अच्छी माँ की बेटी और एक बेटे की माँ हूँ …. लेकिन एक सवाल है मेरे मन में उसके जबाब ढूंढ रही हूँ ….
एक माँ के तीन बेटे थे …. वे बेटे अनुशाषित परिवेश में परिवरिश पाकर बड़े हुये थे …. उनकी शादी हुई …. बेटों की माँ का किसी भी बहू से मधुर संबंध नहीं हो सका …. क्यूँ कि सुबह से शाम और शाम से रात तक , माँ एक औरत की तरह सोचती ही नहीं थी …. एक हिटलर की तरह थी माँ ….
शादी के बाद भी माँ चाहती थी कि बेटे केवल उसकी बात मानें , और अपनी पत्नी का ख्याल न रखे .…
सबसे बड़ा बेटा माँ के कथनानुसार ही चलता …. माँ जो जब कहती ,वही सुनता-समझता-करता …. माँ का आज्ञा-पालन करना अच्छी बात है …. लेकिन सूरज के गोले को चाँद कहना …. थोड़ा ज्यादा हो जाता था …. जिसके कारण उस बेटे का बैवाहिक जीवन सुचारु -रूप से नहीं चला ….
तलाक़ नहीं हुआ …. लेकिन प्यार नहीं हो सका ….
उस बड़े बेटे को भी बच्चे हुये .… एक दिन बड़े बेटे का बेटा बाहर पढ़ने के लिए दूसरे शहर जा रहा था …. पोता ,दादी का पैर छु कर आशीर्वाद लेने के लिए झुका तो दादी उससे बोली कि तुम ,अपने पापा (श्रवण-पुत्र) जैसा ही बनाना …. उनके पैर से सीधा होते हुये पोता बोला ,दादी ,पापा जैसा पढ़ाई में ,इंसानियत में बनने का कोशिश करूंगा …. लेकिन माँ सूरज को चाँद बोलने के लिए बोलेगी तो बोलूँगा ना दादी ……??
एक घर में एक माँ को दो बेटियाँ थीं …. बड़ी बेटी पढ़-लिख कर नौकरी करने के लिए बड़े शहर में रहने लगी …. उसके साथ ,उसकी माँ भी रहने लगी …. छोटी बेटी पापा-दादा के साथ गाँव में रहती थी …. कुछ दिनो के बाद बड़ी बेटी की मुलाकात एक लड़के से हुई …. बात-चीत का जरिया facebook – phone बना …. एक – दो महीने के बाद उस लड़की ने ,लड़के को बोली कि मैं तुम्हें पहले दिन से ही पसंद करती हूँ ….
तुम मुझसे शादी करोगे …. लड़का बोला कि तुम ना मेरी जाति की हो और ना हम एक राज्य के हैं …. मेरे घर में तो कोई परेशानी नहीं होगी …. क्यूँ कि मैं अपने माता -पिता के विचार जानता हूँ ….
वे धर्म-जाति नहीं मानते हैं …. लेकिन तुम्हारे घर में हंगामा हो सकता है ….
पहले तुम अपने माता-पिता से बात कर उनके विचार जान लो …. उसके बाद हम इस पर सोचेगें और तब मैं अपने घर में माता-पिता से बात करूंगा ….
लड़की अपनी माँ से बात की …. तो उसकी माँ अचंभित हो गई और बहुत गुस्सा हुई ….
कुछ दिन tak तकरार होता रहा …. अंत में एक दिन उसकी माँ बोली कि वो मंदिर जाएगी (उस मंदिर की विशेषता ये है कि अगर इच्छा पूरी होनी हो तो सफेद फूल और अगर मनोकामना पूरी ना होनी हो तो लाल फूल हांथों में आता है)
उसकी माँ मंदिर गई …..कतार में लगी ….उसके हांथों में सफेद फूल आ गया ….माँ बहुत खुश हुई ….
अपनी बेटी को उस लड़के से मिलने -डिनर पर जाने की इजाजत दे दी ….
लड़के को लगा कि सब ठीक है ….
तो वो भी अपने घर में बता दिया कि उसने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है और कुछ दिनों में लड़की की माँ आपलोगों से बात करेंगी ….
लड़के के माता-पिता बिना लड़की को देखे ….
बिना उसके परिवार के लोगों से मिले शादी की स्वीकृति दे दिये ….
लेकिन लड़की की माँ को एक दिन लगा कि लड़की-लड़के कि कुंडली मिला कर देख लिया जाये ….
वे दोनों का कुंडली मिलवाईं तो नहीं मिला फिर क्या था …..बैताल पेड़ पर
अब लड़की की फिर से परेशानी बढ़ गयी ….वो जितना ही माँ को मनाने कि कोशिश करती …. उसकी माँ उसको उतना ही तंग करती …. बीच सड़क पर मारती ….लेकिन लड़की अपने जीद पर अड़ी रही …. लड़की की माँ का कहना था कि लड़की अपनी माँ के पसंद के लड़के से शादी कर ले ….
इसी बहस के दौरान एक दिन लड़की की माँ लड़की को उसके सारे सामानों के साथ रात के 9 बजे घर से निकाल दी …. उस अंधेरी-सुनसान रास्ते पर बेटी को छोड़ते माँ का कलेजा कैसे माना होगा …. ??
उस लड़की को क्या चाहिए था
अपने हिस्से का एक मुट्ठी धूप
उस एक मुट्ठी धूप पर
लड़की का क्या हक़ नहीं था… ?
स्त्री विरुद्ध स्त्री
रूढ़ि सन्नद्ध स्थिति
जटिल मसला
स्त्री विरुद्ध स्त्री
पुरुष तरफदारी
खोटा समझ
स्त्री विरुद्ध स्त्री
दमन अनिवार्य
सतही सोच
स्त्री विरुद्ध स्त्री
सनातनी व्यवस्था
वैर निभाना
स्त्री विरुद्ध स्त्री
सत्ता परिवर्तन
टूटा सपना
स्त्री विरुद्ध स्त्री
जुल्मो-सितम ढाती
दूषित मन
स्त्री विरुद्ध स्त्री
(मेरे साथ हुआ था ,तुम्हारे साथ क्यूँ ना हो ??)