वो अनुभव जो मैंने महसूस किया ……
जब हमारी १२कक्षा से विदाई हो रही थीं उसी दौरान मैंने अपने विचारों को पहली बार सभी के समुख लिखकर सभी का अभिनन्दन किया उस वक्त एक ऐसी हलचल चल रही थी कि आज के बाद क्या होगा उस दिन कि हलचल कोआप सभी से रूबरू कराना चाहती हूँ…………विदाई समारोह के दौरान मेरे विचार
आज मुझसे इस बचपन का ऐसा सुनहरा पल खो जाएगा जो मुझे ये एहसास करता था कि मेरी अध्यापिका मुझे मेरी राह बताने वाली है कि बेटे यह काम गलत है या ये काम सही है ……जैसे की एक छोटे बच्चे को उनकी माता उग्लि पकड़ कर चलना सिखाती हैं उसी प्रकार से आज के बाद मुझे कोई ये नहीं कहेगा बेटा ये काम करो या ये काम नहीं करो………
एक बचपन का ऐसा पल जो मेरी नजरों से ओझल हो जाएगा
जो मुझे एक छोटा बच्चा होने का एहसास करता था जैसे एक बच्चा अपने बचपन के खेल में खो गया है अचानक ही उससे वह खूबसूरत वक्त छिन जाएगा जैसे हम बच्चे से उसका बहुत सुंदर खिलौना छिपा लेते है और बच्चा रोने लगता हैं लेकिन बाद में जब उसे समझ आता हैं तो वह बच्चा समझता है कि वे खिलौना तो छोटा था मुझे अभी इससे बड़ा खिलौना चाहिए अर्थात् ये जिन्दगी की बड़ी अभिलाषाओं को पूरा करना है जिस प्रकार एक घड़ा बूंद -बूंद से भरता हैं उसी प्रकार मैंने इस विधालय की अध्यापिका से बहुत कुछ ग्रहण किया है ताकिअपनी इस शिक्षा को सही कार्य का हथियार बनाकर अपने साथ रखूँगी
मैं अपनी अध्यापिकाओं की प्रशंसा किन शब्दों में करू……इनकी प्रशंसा के लिए तो शब्द ही कम पड़ जाएंगे और मैंने कर भी दिया तो शायद समय का पता ही नही चलेगा
कुछ बचपन का एहसास ऐसा भी था