परेशां जिंदगी – रमा भाटी

‘परेशां जिंदगी’
ऐ जिंदगी करले कितना भी
परेशां तू कि टूट जाएं हम
अगर सोचती हो ऐसा
तो गलत सोचती हो तुम
चाहे आ जायें जीवन मे तूफां
ना डगमगायेंगे कभी भी हम।
बहुत देख लिए जीवन में
उतार चढ़ाव सभी हमने पर
ना इस कदर रास आई जिंदगी
 सोचा भी ना था जीवन में
कभी इतना बदलाव आएगा
जाने कैसे बसर हो रही है
 अब यह जिंदगी।
वो भी क्या दौर थे  जब
खतों में जज्बात लिखकर
भेज दिया करते थे डाक से
फिर इंतजार किया करते थे
खतों के जवाबों का महीने तक।
कभी हमने भी रिश्तों में
मिठास महसूस की थी
अब कहां रहे वो खूबसूरत रिश्ते
कहां मिठास भरी वो बोलियां
अब तो खुदगर्जी ,बेमुरव्वती
अकेलेपन और निराशा में
खोते  जा रहे हैं हम।
रमा भाटी
राजस्थान