यदि तुम चाहो – रश्मि प्रभा

बैठो

कुछ खामोशियाँ मैं तुम्हें देना चाहती हूँ
वो खामोशियाँ
जो मेरे भीतर के शोर में
जीवन का आह्वान करती रहीं
ताकि
तुम मेरे शोर को पहचान सको
अपने भीतर के शोर को
अनसुना कर सको !
जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा
कभी बेहद लम्बी होती है
कभी बहुत छोटी
कभी  …
न जीवन मिलता है
न मृत्यु !!
जन्म ख़ामोश भय के आगे
नृत्यरत शोर है
मृत्यु
विलाप के शोर में
एक खामोश यात्रा  …
शोर ने मुझे बहुत नचाया
ख़ामोशी ने मेरे पैरों में पड़े छालों का
गूढ़ अर्थ बताया  …
बैठो,
कुछ अर्थ मैं तुम्हें सौंपना चाहती हूँ
यदि  …
यदि तुम चाहो !!!