मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में चंदेरी
विंध्याचल पर्वत से घिरा है।
ऐतिहासिकता समेटे यह शहर पर्यटकों
के आकर्षण का केंद्र रहा है। हालांकि
अब तक पता नहीं चल पाया कि
चंदेरी शहर की खोज किसने की। एक
किवंदती के अनुसार ऐसा माना जाता
है कि भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई
राजा शिशुपाल ने वैदिक काल में इस
शहर की खोज की थी। दूसरी किवंदती
के अनुसार राजा चेद ने इस शहर की
नींव रखी और 600 ईस्वीं पूर्व के लगभग
यहां शासन भी किया। चंदेरी का
इतिहास पर्यटकों को चौंकाता है।चंदेरी
जैन संस्कृति का मुख्य केंद्र है। वर्तमान
चंदेरी शहर से 19 किलोमीटर की दूरी
पर उर्वशी नदी के किनारे पुरानी चंदेरी
है। इसे बुधी चंदेरी भी कहा जाता है।
शिवपुरी से 127 किलोमीटर दूर चंदेरी
चारों तरफ से पहाडि़यों, झीलों और
जंगलों से घिरा है। यहां बुंदेल राजपूत
और मालवा के कई स्मारक इस शहर
की शान बढ़ाते हैं। यहां तक कि इस
शहर का जिक्र महाभारत में भी किया
गया है। महाभारत काल के दौरान
शिशुपाल यहां के राजा थे। यह शहर
मालवा, मेवाड़, मध्य भारत और दक्षिण
से व्यापार का रास्ता बना था।चंदेरी में
देखने के लिए कई ऐतिहासिक धरोहर
हैं। जैसे कोशाक महल। यह साधारण
इमारत चंदेरी से चार किलोमीटर की
दूरी पर है। 1445 में इसे विजय स्मारक
के रूप में बनाया गया। मालवा के
सुलतान महमूदशाह खिलजी ने महमूद
शरकी पर जीत की खुशी में यह स्मारक
बनवाया था।यहीं पर शहजादी का रउजा
परमेश्वर तालाब के नजदीक बनाई
गई है। यह चारों तरफ चार गुंबदों
और बीच में एक बड़े गुंबद में ढकी
थी। मगर समय के साथ यह क्षतिग्रस्त
हो गई। 15वीं शताब्दी के करीब इसे
चंदेरी के गर्वनर ने अपनी बेटी
मेहरूनिसा की याद में बनवाया था।
कहा जाता है कि मेहरूनिसा को आर्मी
के चीफ से प्यार हो गया था। लेकिन
गर्वनर ने चीफ को मरवा दिया। यह
बात उनकी बेटी बर्दाश्त नहीं कर पाई
और उसने भी उस चीफ के साथ दम
तोड़ दिया। उसी जगह यह स्मारक
बनाया गया। आज भी यह स्मारक
उस जोड़े की प्रेम की गाथा कहता है।
इस स्मारक के चारों तरफ तालाब हैं।
इसलिए इसके अंदर नहीं जाया जा
सकता।
रामनगर पैलेसे एंड म्यूजियम को
1698 में महाराजा दुर्जन सिंह बुंदेला
ने बनवाया था। आज यह
आर्किलोजिकल डिपार्टमेंट के अधीन
है। इस म्यूजियम में हिंदू मंदिरों के
अवशेष, भगवान की मूर्तियां और सती
के पत्थर रखे हुए हैं। नौवीं शताब्दी से
लेकर 18वीं शताब्दी की वस्तुएं यहां
देखने को मिलती हैं। साथ ही चारों
तरफ से हरियाली से घिरा मेहजातिया
तालाब पर्यटकों का पसंदीदा पिकनिक
स्पॉट है। इस तालब की ऐतिहासिक
महत्ता है। कहते हैं 28 जनवरी, 1528
में बाबर ने चंदेरी किले पर हमला
करने से पहले यहीं अपनी रात बिताई
थी।इसके अलावा कई ऐतिहासिक
स्मारक जैसे पुराना मदरसा, बादल
महल दरवाजा, गोल बावड़ी, कटी घाटी
गेटवे दर्शनीय हैं। चंदेरी में हैंडलूम
का बड़ा कारोबार होता है। खासकर
साडि़यों के लिए जिसे चंदेरी सिल्क भी
कहा जाता है। यहां तीन तरह के
फैब्रिक बनाए जाते हैं- प्योर सिल्क,
चंदेरी कॉटन और सिल्क कॉटन। चंदेरी
साड़ी पूरे भारत में लोकप्रिय है। इसे
हाथ से बुनकर बनाया जाता है। मुगलों
का चंदेरी किला पर्यटकों के आकर्षण
का मुख्य केंद्र है। शहर से 71 मीटर
ऊपर चंदेरी किला पहाड़ पर है। चंदेरी
किले का मुख्य दरवाजा खूनी दरवाजा
कहलाता है। इस किले का निर्माण
मुसलिम शासकों ने करवाया था। इस
किले का दरवाजा पहाड़ की तरफ
खुलता है जिसे कटा पहाड़ या श्कटी
घाटी के नाम से जाना जाता है।
चंदेरी का अपना कोई रेलवे स्टेशन
नहीं। 110 किलोमीटर की दूरी पर
झांसी रेलवे स्टेशन है। यहां से चंदेरी
के लिए बस या टैक्सी आसानी से
मिल जाती है।